गौमाता का वैज्ञानिक महत्व

         प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक), नंदिनी, पद्मा, कपिला आदि गायों का महत्त्व बताया गया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने असि, मसि एवं कृषि गौ वंश को साथ लेकर उनके महत्त्व मनुष्य को सिखाए। हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्रा से काल सर्प योग निवारण हो जाता है। कहते है की गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है क्योंकि गाय के चार पैर चार धाम माने गए है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है उसी प्रकार यदि एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है। यही कारण है कि इसलिए हमारे यहाँ यज्ञ हवन अग्नि-होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता था। प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।धार्मिक ग्रंथों में लिखा है “गावो विश्वस्य मातर:” – अर्थात गाय विश्व की माता है।

 

          गौ माता की रीढ़ की हड्डी मे सूर्य नाड़ी एवं केतु नाड़ी साथ हुआ करती है और जब वो धूप में निकलती तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है, जिसे स्वर्णक्षार कहते है। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय के दूध का रंग हल्का पीला या सुनहला होता है जिसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हो और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले है वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा। गौ माता का (गोधूलि वेला) में घर वापस लौटने का संध्या का समय अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गौ-औषधि है। माँ शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है और मानव समाज ने भी माँ शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो “माँ” शब्द गुंजायमान होता है।

 

         गौशाला में बैठकर किये गए यज्ञ, हवन,जप-तप का फल कई गुणा मिलता है। बच्चों को नज़र लग जाने पर गौ माता की पूंछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उतर जाती है। ऐसा उदाहरण पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नज़र लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारने का ग्रँथों में भी पढ़ने को मिलता है। गौ के गोबर से स्थान का लीपने से स्थान पवित्र होता है। गौ-मूत्र का पावन ग्रंथों अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाणभट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सश्रुतु संहिता इत्यादि में सुंदर वर्णन किया गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष नाश के लिए सर्वोत्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय के दूध में रेडियों विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है जिसमे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, दुग्ध, शर्करा, खनिज-लवण, वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है।